"भगवान बद्रीनाथ धाम के कपाट"
प्रणाम न्यूज ब्यूरो
"स्कंद पुराण के अनुसार, आदिगुरू शंकराचार्य को नारद कुंड से भगवान् विष्णु की मूर्ति प्राप्त हुई थी और फिर 8 वीं शताब्दी ए.डी. में उस मूर्ति को उन्होंने मंदिर में स्थापित किया। स्कंद पुराण में बद्रीनाथ धाम के बारे में उल्लेख किया गया है की: “स्वर्ग में, पृथ्वी पर और नरक में कई पवित्र मंदिर हैं; लेकिन बद्रीनाथ की तरह कोई मंदिर नहीं है।"
उत्तराखंड में बद्रीनाथ धाम के कपाट एक लंबे शीतावकाश के बाद शुक्रवार तड़के खोल दिए गए. इससे पहले बद्रीनाथ मंदिर को फूलों से भव्य तरीके से सजाया गया. लॉकडाउन के चलते इस मौके पर बद्रीनाथ में कोई मौजूद नहीं है. महज गिनती के ही लोग मंदिर में देखे गए. पूरे विधि-विधान के साथ शुक्रवार 4.30 बजे मंदिर के कपाट खोले गए.
बद्रीनाथ में आज होने वाला विष्णु सहस्त्रनाम पाठ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम की थी . देश को कोरोना से मुक्ति की कामना की गई . कपाट खुलने के समय मुख्य पुजारी रावल, धर्माधिकारी भूवन चन्द्र उनियाल, राजगुरु सहित केवल कुछ लोग ही शामिल हो सके. इस दौरान मास्क के साथ सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया. इससे पूर्व पूरे मंदिर परिसर को सैनिटाइज किया गया. कपाट खुलने से पूर्व गर्भ गृह से माता लक्ष्मी को लक्ष्मी मंदिर में स्थापित किया गया और कुबेर जी व उद्धव जी की चल विग्रह मूर्ति को गर्भ गृह में स्थापित किया गया.
बद्रीनाथ के कपाट खुलने के साथ ही चार धाम यात्रा का विधिवत आरंभ हो गया है जिसे इस भू-लोक का आठवां बैकुंठ धाम भी कहा जाता है, जहां भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. करोड़ों हिंदुओं के आस्था के प्रतीक भगवान बद्री विशाल के कपाट शुक्रवार सुबह 4 बजाकर 30 मिनट पर ब्रह्ममुहूर्त में धार्मिक परंपरानुसार एक बार फिर से ग्रीष्मकाल के लिए खोल दिए गए हैं.
भगवान बद्रीनाथ के शुक्रवार के दर्शनों में मुख्यत: अखंड ज्योति और भगवान बद्रीनाथ के निर्वाण दर्शन होते हैं. इसे देखने का आज का मुख्य महत्व होता है. शुक्रवार को पूरे दिन मंदिर खुला रहेगा, लेकिन सुबह में श्रद्धालु पूरी तरह से नदारद रहे क्योंकि इस समय लॉकडाउन चल रहा है. बद्रीनाथ धाम के कपाट तो खुल गए मगर श्रद्धालुओं को धाम तक आने की अनुमति नहीं है.
सुबह सबसे पहले कपाट खुलते ही भगवान बद्री विशाल की मूर्ति से घृत कंबल को हटाया गया. कपाट बंद होते समय मूर्ति पर घी का लेप और माणा गांव की कुंवारी कन्याओं के द्वारा बनाई गई कंबल से भगवान को ढका जाता है और कपाट खुलने पर हटाया जाता है. इसके बाद मां लक्ष्मी बद्रीनाथ मंदिर के गर्भ गृह से बहार आईं जिसके बाद भगवान बद्रीनाथ जी के बड़े भाई उद्धव जी और कुबेर जी का बद्रीनाथ मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश हुआ. इसी के साथ भगवान बद्रीनाथ के दर्शन शुरू हो गए.
कपाट बंद की अवधि में छह माह से जल रही अखंड ज्योति के दर्शन किए जाते हैं. हमेशा से पहले दिन अखंड ज्योति के दर्शनों के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु धाम पहुंचते हैं. हालांकि इस बार लॉकडाउन के चलते श्रद्धालु नहीं पहुंच पाए मगर अखंड ज्योति 6 माह कपाट बंद के बाद यहां पर जलती रही. कपाट खुलने पर ज्योति को अखंड रखा जाता है. कपाट बंद होने के बाद भी यह जलती रहती है और कपाट खुलने पर सबसे पहले श्रद्धालुओं को यही दर्शन करने को मिलता है.
पिछले साल कपाट खुलने के बाद पहले दिल लगभग 10,000 श्रद्धालुओं ने मंदिर के दर्शन किए थे. गुरुवार को मंदिर और आसपास के इलाके को कई कुंटल फूलों से सजाया गया.
बद्रीनाथ धाम का इतिहास एवं
उससे जुडी पौराणिक कहानियां
अलकनंदा नदी के किनारे बद्रीनाथ धाम में स्थित है बद्रीनाथ (बद्रीनारायण) मंदिर | प्रमुख चारो धामों में से एक बद्रीविशाल के इस मंदिर में भगवान विष्णु के बद्रीनाथ रूप की पूजा होती है | यह पंच बद्री में से एक बद्री भी है |बद्रीनाथ मंदिर समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है | बद्रीनाथ भगवान विष्णु की तपस्थली है और यह 2000 वर्षों से एक प्रमुख तीर्थ स्थान रहा है | आठवीं शताब्दी में संत आदि शंकराचार्य ने यहाँ बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण करवाया |बद्रीनाथ मंदिर की कथा
भगवान बद्रीविशाल की चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में शालीग्रामशिला मूर्ति की पूजा बद्रीनाथ मंदिर में होती है | आदि पुराणों के अनुसार प्रस्तुर बद्रीविशाल की मूर्ति स्वयं देवताओं ने नारदकुंड से निकालकर यहाँ स्तापित की और पूजा अर्चना और तपस्या की | जब बौद्ध धर्म के अनुयायी इस स्थान पर आये तो उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति समझ कर इसकी पूजा शुरू कर दी | शंकराचार्य की सनातन धर्म प्रचार यात्रा के दौरान बौद्ध धर्म के अनुयायी तिब्बत जाते हुए इस मूर्ति को अलकनंदा नदी में डाल कर चले गये | आदिगुरू शंकराचार्य ने इस मूर्ति को निकालकर पुनः स्थापित किया और बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण करवाया | समय बीतने पर यह मूर्ति पुनः स्थान्तरित हो गयी | रामानुजाचार्य ने पुनः इसे तप्तकुंड से निकालकर इसकी स्थापना की |
बद्रीनाथ धाम का महत्व
चारों धामों में प्रमुख बद्रीनाथ धाम का हिन्दू धर्म में बहुत बड़ा महत्त्व है | भगवान नर-नारायण विग्रह की पूजा यहाँ होती है | मंदिर में एक अखंड दीप जलता है जो अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है | सभी श्रद्धालु यहाँ स्थित तप्तकुंड में स्नान करने के बाद भगवान बद्रीविशाल के दर्शन करते हैं | मंदिर में मिश्री, गिरी का गोला, चने की कच्ची दाल और वनतुलसी की माला आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है |
भगवान विष्णु का नाम बद्रीनाथ कैसे पड़ा ?
लोक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ध्यान योग के लिए स्थान खोजते हुए अलकनंदा नदी के तट पर पहुंचे | भगवान शिव की इस केदार भूमि में स्थान पाने के लिए बाल रूप में अवतरित हुए | वह स्थान जहाँ भगवान अवतरित हुए उसे अब चरणपादुका स्थल के नाम से जाना जाता है |
बाल रूप में अवतरण कर भगवान विष्णु जोर जोर से क्रंदन करने लगे | उनके रोने की आवाज सुनकर भगवन शिव और माता पार्वती उनके पास आकर उनसे रोने का कारण पूछा | तब बालक रुपी भगवान विष्णु ने केदार भूमि में उस स्थान को अपने ध्यानयोग हेत मांग लिया | इसके पश्चात जब भगवान विष्णु तपस्या में लीन थे तब बहुत अधिक हिमपात होने लगा | भगवान पुरे बर्फ से ढक गये | तब माता लक्ष्मी ने भगवान के समीप खड़े होकर एक बेर (बद्री) के वृक्ष का रूप ले लिया | बेर वृक्ष रुपी माता ने लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को धुप, वर्षा और बर्फ से बचाए रखा | वर्षो तक भगवन और माता की ये तपस्या चलती रही | तप पूर्ण करने पर जब भगवान विष्णु ने बर्फ से ढकी माता देखि तो कहा “हे देवी ! आपने भी मेरे बराबर तप किया है | आज से ये स्थान बद्री के नाथ यानी बद्रीनाथ के नाम से जाना जायेगा और इस स्थान पर हम दोनों की पूजा होगी |गवान विष्णु के तप स्थल को आज तप्तकुंड कहते हैं और तप के प्रभाव से कुंड का पानी हमेशा गरम रहता है |
बद्रीनाथ मंदिर परिसर
बद्रीनाथ मंदिर परिसर बहुत ही आकर्षक और सुन्दर है | समस्त मंदिर तीन भागों में विभाजित है | गर्भगृह, दर्शनमंडप और सभामंडप | परिसर में कुल १५ मूर्तियाँ हैं जिसमे प्रमुख भगवान बद्रीविशाल की 1 मीटर काले पत्थर की प्रतिमा मंदिर में विराजमान है | उनके बगल में कुबेर लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियाँ स्थापित हैं |
बद्रीनाथ मंदिर खुलने और बंद होने का दिन
बद्रीनाथ मंदिर प्रत्येक वर्ष अप्रैल – मई माह में श्रधालुओं के लिए खुलता है और अक्टूबर – नवम्बर में शीतकाल के लिए बंद हो जाता है | बद्रीनाथ मंदिर के खुलने का दिन पुजारी बसंत पंचमी को पंचांग गणना के बाद बताते हैं | हर वर्ष अक्षय तृतीय के बाद ही बद्रीनाथ मंदिर खुलता है | बद्रीनाथ मंदिर के बंद होने की तिथि विजयदशमी को निर्धारित की जाती है |
बद्रीनाथ मंदिर सुबह 7 बजे से सायं काल 7 बजे तक श्रधालुओं के लिए खुलता है | मंदिर में मुख्या पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य का होता है |
बद्रीनाथ मंदिर के समीप दर्शनीय स्थल
तप्त-कुंड, ब्रह्म कपाल, शेषनेत्र, चरणपादुका, माता मूर्ति मंदिर, माणा गाँव, वेदव्यास गुफा, गणेश गुफा, भीम पुल, वसुधारा, लक्ष्मी वन, संतोपंथ, अलकापुरी, सरस्वती नदी |